भारत में वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च तक होता है। इसका सबसे बड़ा कारण देश की कृषि व्यवस्था है। हमारे यहां मानसून जून से सितंबर तक आता है, जिससे खरीफ और रबी दोनों फसलों का उत्पादन प्रभावित होता है। किसान जून-जुलाई में बुआई करते हैं और अक्टूबर-मार्च के बीच फसल काटते हैं। सरकार को कृषि योजनाएं, सब्सिडी और नीतियां बनाने में आसानी होती है, क्योंकि इस दौरान किसानों की आय और उत्पादन का आकलन किया जाता है। इससे सरकार भंडारण, निर्यात और समर्थन मूल्य जैसी योजनाएं बना पाती है।
ब्रिटिश सरकार की देन
वित्तीय वर्ष की शुरुआत अप्रैल में होने का एक बड़ा कारण ब्रिटिश शासन भी है। भारत का पहला बजट 7 अप्रैल 1860 को पेश किया गया था, जो मई से अप्रैल के वित्तीय वर्ष के लिए था। लेकिन 1867 में ब्रिटिश सरकार ने भारत का वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च तक कर दिया, ताकि इसे ब्रिटेन के वित्तीय वर्ष से जोड़ा जा सके। यह परंपरा आज भी चल रही है। हालांकि, समय-समय पर इसे जनवरी से दिसंबर करने की मांग उठती रहती है लेकिन अभी तक कोई बदलाव नहीं हुआ है।
वैश्विक व्यापार से तालमेल
भारत का वित्तीय वर्ष वैश्विक अर्थव्यवस्था से भी जुड़ा हुआ है। भारत के प्रमुख व्यापारिक साझेदार जैसे ब्रिटेन, कनाडा, न्यूजीलैंड और हांगकांग भी अप्रैल से मार्च का वित्तीय वर्ष अपनाते हैं। इससे अंतरराष्ट्रीय लेन-देन में आसानी होती है और भारत की आर्थिक गतिविधियां वैश्विक मानकों के अनुरूप बनी रहती हैं। भारतीय संविधान में वित्तीय वर्ष को लेकर कोई विशेष प्रावधान नहीं है, लेकिन General Clauses Act, 1897 में इसे 1 अप्रैल से 31 मार्च तक तय किया गया है। सरकार चाहें तो इसे बदल सकती है, लेकिन इसके लिए कई कर कानूनों में संशोधन करना होगा।